Osho Pravachan par Aadharit : Jeevan Jeene Ki Kala: ओशो प्रवचनों पर आधारित : जीवन जीने की कला (Hindi Edition)

Notes & Highlights

Osho Pravachan par Aadharit : Jeevan Jeene Ki Kala: ओशो प्रवचनों पर आधारित : जीवन जीने की कला (Hindi Edition)

“जीवन को जानने की सम्भावना तो तभी है, जब हमारा व्यक्तित्व एक ओपनिंग एक द्वार बन जाये। गीत के लिए, हवाओं के लिए, सौन्दर्य के लिए, संगीत के लिए, सुगन्ध के लिए, सब तरफ हमारा जीवन एक द्वार बन जाये।” – ओशो

यह बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं है कि आप कहां जाएं, यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि आपके भीतर सीखने का दृष्टिकोण, एटिट्यूट ऑफ लर्निंग है या नहीं?

लेकिन हमारी असफलता, जीवन के फल को चखने की हमारी सीमा, हमारे लिए बंधन बनती रही है, जीवन को जीने की कला ही हमने नहीं सीखी बल्कि कला को जानने से सब जीवन तिक्त और बेस्वाद लगा, तो हमने जीवन को ही तोड़ देने की कोशिश की, अपने को बदलने की नहीं। हमने उस पागल की तरह व्यवहार किया है, शायद उस पागल के संबंध में आपने सुना हो। न सुना हो तो मैं कहूं और शायद आप पहचान भी लें कि वह पागल कौन है।

अगर दुःख हमारे जीवन की व्यवस्था है तो संसार में दुःख दिखाई पड़ेगा। अगर चिंता हमारे चित्त की व्यवस्था है तो संसार में कांटे दिखाई पड़ेंगे। संसार हमारी प्रतिध्वनि है। जो हमारे भीतर है, वही प्रतिध्वनित हो उठता है वही री-ईको हो उठता है।

योग ने पतंजलि ने हठयोग ने बहुत-सी प्रक्रियाएं खोजी हैं ‘मूल’ को बांधने की। मूल जब बंध जाए तो ऊर्जा अपने आप ऊपर उठने लगती है क्योंकि नीचे का द्वार बंद हो जाता है, द्वार अवरुद्ध हो जाता है।

जब भी तुम्हारे मन में काम-वासना उठे तो एक छोटा-सा प्रयोग करो। धीरे- धीरे तुम्हारी राह साफ हो जाएगी। जब भी तुम्हें लगे कि काम-वासना तुम्हें पकड़ रही है, तब डरो मत। शांत होकर बैठ जाओ। जोर से श्वास को बाहर फेंको-उच्छवास। भीतर मत लो श्वास को क्योंकि जैसे ही तुम भीतर गहरी श्वास को लोगे भीतर जाती श्वास काम-ऊर्जा को नीचे की तरफ धकेलती है। जब तुम्हें काम-वासना पकड़े तब एक्सहेल करो, बाहर फेंको श्वास को। नाभि के भीतर खींचो पेट को, भीतर लो और श्वास को बाहर फेंको जितनी फेंक सको। धीरे- धीरे अभ्यास होने पर तुम संपूर्ण रूप से श्वास को बाहर फेंकने में सफल हो जाओगे।

शून्य खींचता है क्योंकि प्रकृति शून्य को बर्दाश्त नहीं करती, शून्य को भरती है। तुम्हारी नाभि के पास शून्य हो जाए तो मूलाधार से ऊर्जा तत्क्षण नाभि की तरफ उठ जाती है और तुम्हें बड़ा रस मिलेगा - जब तुम पहली बार अनुभव करोगे कि एक गहन ऊर्जा बाण की तरह आकर नाभि में उठ गई। तुम पाओगे, सारा तन एक गहन स्वास्थ्य से भर गया। एक ताजगी। यह ताजगी वैसी ही होगी ताजगी का ठीक वैसा ही अनुभव होगा जैसा संभोग के बाद उदासी का होता है, जैसे ऊर्जा के स्खलन के बाद एक शिथिलता पकड़ लेती है।

संभोग के बाद जैसे विषाद का अनुभव होगा वैसे ही अगर ऊर्जा नाभि की तरफ उठ जाए तो तुम्हें हर्ष का अनुभव होगा। एक प्रफुल्लता घेर लेगी। ऊर्जा का रूपांतरण शुरू हुआ। तुम ज्यादा शक्तिशाली ज्यादा सौमनस्यपूर्ण, ज्यादा उत्फुल्ल, सक्रिय, अनथके, विश्रामपूर्ण मालूम पड़ोगे जैसे गहरी नींद के बाद उठे हो, ताजगी आ गई।

अगर एक व्यक्ति दिन में कम-से-कम तीन सौ बार क्षण भर को भी मूलबंध लगा ले कुछ ही महीनों के बाद पाएगा काम-वासना तिरोहित हो गई। काम-ऊर्जा रह गई, वासना तिरोहित हो गई।

ऊर्जा जब बढ़ेगी हृदय में कंठ से आएगी, तब तुम्हारी वाणी में एक माधुर्य आ जाएगा। तब तुम्हारी वाणी में एक संगीत एक सौंदर्य आ जाएगा। तुम साधारण से शब्द बोलोगे और उन शब्दों में काव्य होगा। तुम दो शब्द किसी से कह दोगे और तुम उसे तृप्त कर दोगे। तुम चुप भी रहोगे तो तुम्हारे मौन में भी संदेश छिप जाएंगे। तुम न भी बोलोगे तो तुम्हारा अस्तित्व बोलेगा। ऊर्जा कंठ पर आ गई।

मूलाधार अंधा चक्र है, इसलिए तो हम काम-वासना को अंधी कहते हैं। वह अंधी है, उसके पास आंख बिल्कुल नहीं है। आंख खुलती है - तुम्हारी असली आंख जब तीसरे नेत्र पर ऊर्जा आकर प्रकट होती है। जब लहरें तीसरे नेत्र को के लगती है। तीसरे नेत्र के किनारे पर जब तुम्हारी ऊर्जा की लहरें टकराने लगती है, पहली बार तुम्हारे भीतर दर्शन की क्षमता जगती है।

मेरे हिसाब से सभी टेलीविजन केंद्र यूनिवर्सिटियों, कॉलेजों और स्कूलों के अंतर्गत होने चाहिए और उनमें ऐसे कार्यक्रम हों जो लोगों को शिक्षित करें। विज्ञापन बिल्कुल नहीं होने चाहिए - वे कोई शिक्षा नहीं हैं, वे कुशिक्षा हैं, वे शोषण हैं। लोगों को इतिहास सिखाया जाना चाहिए। छोटे बच्चे जो भाषा में नहीं समझ पाते वे सरलता से इतिहास को जानने में, भूगोल को समझने में, दूसरे विषयों को जानने में उत्सुक हो जाएंगे। हर वर्ग के बच्चों के लिए विज्ञान, साहित्य, कथा, काव्य, चित्रकारी और हर विद्या के कार्यक्रम दिखाए जा सकते हैं। हर